मुरादाबाद में तरावीह मुकम्मल होने का सिलसिला शुरू:इस्हाकी मस्जिद में तरावीह मुकम्मल के बाद पैगाम-गरीबों के लिए खोल दें खजाने


मुरादाबाद में मुकद्दस माह-ए-रमजान के पहले अशरे में कुरान मुकम्मल होने का सिलसिला शुरू हो गया है। महानगर की कई मस्जिदों में पहले अशरे के पहले रोजे से तरावीह के दौरान पांच पारो का एहतमाम किया गया था, जो शुक्रवार को छठे रोज़े पर मुकम्मल हुआ।
कुरान मुकम्मल होने का सिलसिला
महानगर की कई अन्य मस्जिदों के साथ ही शुक्रवार को पीली कोठी स्थित इस्हाकी मस्जिद में भी नमाज-ए-तरावीह में कुरान मुकम्मल हुआ। वहीं दूसरी ओर तख्त वाली मस्जिद में भी कुरान करीम मुकम्मल हुआ।
इसके अलावा, महानगर की कई मस्जिदों में पांच पारो के साथ छठे दिन कुरआन करीम मुकम्मल हो गया। पीली कोठी स्थित, इस्हाकी मस्जिद में सैकड़ों की तादाद में अकीदतमंदों ने तरावीह की नमाज अदा की। यहां महानगर के कई इलाकों के अलावा आसपास के जिलों से भी बड़ी तादाद में लोग शामिल हुए।
मस्जिद इसहाकी में नमाज में बाद दुआ का एहतमाम किया गया। जहां बड़ी तादाद में लोगों ने शिरकत की, और देश में अमन चैन, सलामती, क़ौम की तरक्की, आपसी भाईचारे और इत्तेहाद के लिए खुदा की बारगाह में हाथ उठाकर दुआ की।
कुरआन करीम मुकम्मल होने के बाद दुआ और उसके बाद नातिया महफिल भी सजाई गई। मुफ्ती सैय्यद मुस्तजाब हुसैन कदीरी ने कुरआन करीम सुनाया।
मुफ्ती सैय्यद मुस्तजाब हुसैन कदीरी का संदेश
मुफ्ती सैय्यद मुस्तजाब हुसैन कदीरी ने रमजान की फजीलत बयान की। उन्होंने कहा, रमजान के महीने में एक-एक रोजा बहुत कीमती है। इस माह में मुसलमानों को ज्यादा से ज्यादा वक्त इबादत में गुजारना चाहिए। उन्होंने कहा, माहे रमजान में आपकी जुबान में खुलूस, प्यार और मुहब्बत हो, अपने अज़ीज़, रिश्तेदार, आस-पड़ोसियों के अलावा गरीबों का ख्याल रखें।
उन्होंने कहा, जिन्होंने कुरआन करीम मुकम्मल किया है वो पूरे महीने तरावीह का एहतमाम करें। कहा, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमेशा लोगों को तकसीम किया करते थे, आपके दर से कोई सवाली खाली हाथ नहीं जाता था, इसलिए गरीबों मजलूमों के लिए अपने खजाने खोल दें और दिल खोलकर तकसीम करें।
नमाज-ए-तरावीह और कुरआन करीम के हिस्से
रमजान के महीने में रोजा रखने के साथ-साथ नमाज-ए-तरावीह भी पढ़ी जाती है, जिसमें हाफिज ए कुरआन, हिफ्ज/याद किए हुए कुरआन करीम के 30 पारे बिना देखे सुनाते हैं।
कुरआन में कुल 30 पारे हैं जिन्हें अरबी में “जुज़” कहा जाता है। इन पारों में 114 सूरहें हैं जिन्हें अरबी में “सूरह” कहा जाता है। इन सूरहों में कुल 6236 आयतें हैं जिन्हें अरबी में “आयत” कहा जाता है। यही वो मुकम्मल कुरआन है जिसे हाफिज-ए-कुरआन नमाज-ए-तरावीह में पढ़ते हैं।