भास्कर इंटरव्यूशिव से राधा रानी भक्ति तक क्यों आए प्रेमानंद महाराज:वृंदावन में उनको 21 साल का क्यों कहा जाता है? पढ़िए उनके गुरु के जवाब
हमने रास्ता दिखाया। दीक्षा दी… वह शरणागत हुए और उसके बाद कभी अलग नहीं हुए। अब वृंदावन में बहुत भीड़ हो गई है, इसलिए उनसे मुलाकात कम ही हो पाती है।’
यह कहना है वृंदावन के राधावल्लभ मंदिर के तिलकायत अधिकारी श्रीहित मोहित मराल महाराज का। उन्होंने ही 21 साल पहले कानपुर के अनिरुद्ध पांडेय को प्रेमानंद महाराज नाम दिया। जो आज एक संत से ज्यादा मोटिवेशनल स्पीकर के रूप में दिखाई देते हैं।
प्रेमानंद शिव भक्ति से राधा रानी तक क्यों आए? उन्हें इस भक्ति मार्ग का रास्ता कैसे दिखाया गया? वृंदावन के लोग उन्हें 21 साल का क्यों मानते हैं? यह जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम ने प्रेमानंद महाराज के गुरु मोहित मराल महाराज से बातचीत की। पढ़िए पूरा इंटरव्यू…
वृंदावन के राधावल्लभ मंदिर के तिलकायत अधिकारी श्रीहित मोहित मराल महाराज हैं। हर रोज भक्त उनसे मिलने पहुंचते हैं।
सवाल- आपकी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत कैसे हुई? जवाब- हमारी कई पीढ़ियां भगवान राधावल्लभ लाल की सेवा कर चुकी हैं। अब हम वृंदावन के प्राचीन मंदिर राधा वल्लभ के सेवायत हैं। हमारा परिवार भगवान की सेवा से जुड़ा रहा, इसलिए हम भी जन्म से ही अध्यात्म से जुड़ गए। अब राधावल्लभ लाल की सेवा करने के साथ कभी-कभी अपने शिष्यों को प्रवचन भी सुना देते हैं।
सवाल- प्रेमानंद महाराज से आपकी पहली मुलाकात कब और कैसे हुई? जवाब- यह तो 21 साल पहले की बात है। प्रेमानंद महाराज राधावल्लभ लाल के दर्शन करने आए थे। यहां उन्होंने मुझे देखा। मेरे पैर छुए और श्रीजी (राधा रानी) की भक्ति करने का रास्ता पूछा। यही हमारी पहली मुलाकात थी।
सवाल- वह आपके साथ कितने दिनों तक रहे? जवाब- प्रेमानंद अध्यात्म को लेकर मुझसे चर्चा करते थे। एक दिन मेरी बातों से प्रभावित होकर उन्होंने अध्यात्म की दीक्षा ली। यह तिथि 2004 में नवसंवत्सर (अप्रैल के महीने में पड़ने वाले नवरात्रि के पहले दिन) की थी। अब उनके भक्त इसी दिन पर उनका जन्मोत्सव मनाते हैं।
सवाल- आपने प्रेमानंद महाराज को ‘निज मंत्र’ की दीक्षा दी। इसके बारे में बताएं? जवाब- निज मंत्र की प्रक्रिया तो शरणागत की है, जब शरण में आना चाहे…। मन से यही प्रक्रिया है। दीक्षा दिवस को ही नया जन्म मनाया जाता है। अभी तक संत प्रेमानंद महाराज हमारे साथ हैं, यह ऐसी व्यवस्था नहीं है कि आए और गए।
सवाल- कुछ लोग कहते हैं संत प्रेमानंद महाराज में बदलाव देखने को मिल रहा? जवाब- ये तो संसार का नियम है। वह भगवान शंकर और पार्वती जी की कथा सुनाते हैं। कहते हैं कि यह संसार है, कुछ लोग उंगली उठाते हैं, यह उनका काम है। लेकिन उनका जो कर्म है, वह कर रहे हैं। अपना स्वभाव नहीं छोड़ना है।
सवाल- प्रेमानंद जी पहले शिव भक्त थे, अब राधा भक्त कैसे हो गए? जवाब- राधावल्लभ, शंकरजी के हृदय से प्रकट हुए हैं। जब आपकी किसी से ज्यादा घनिष्ठता हो जाए, तो उसे अपने से बड़े के पास भेजोगे। शंकरजी से उनकी घनिष्ठता हुई, तो उन्होंने राधावल्लभ लाल के पास भेज दिया।
सवाल- जब आपके संपर्क में आए तब भी क्या उनकी किडनी खराब थीं? जवाब- यह सब कृपा है, उनकी गाड़ी चल रही है। अभी जो श्री हरिवंश नाम की ध्वजा पकड़ाई है, तो वह पूरे संसार में फहराएं। जो जिम्मेदारी दी गई थी, अभी थोड़ा-सा काम हुआ है।
सवाल- महाराज की प्रगति में आप अपना कितना योगदान मानते हैं? जवाब- हमारा क्या योगदान है? हमारा तो कुछ नहीं है। जो रास्ता दिखाया है, उस पर वह चल रहे हैं। हजारों शिष्य हैं, लेकिन कुछ गुरु आज्ञा में हैं, कुछ संसार के हिसाब से चल रहे हैं।
सवाल- यह कहा जाता है कि प्रेमानंद महाराज की बातों में अहंकार दिखाई देने लगा है? जवाब- जितने सिर, उतनी बातें हैं। कुछ लोग निंदा करते हैं और कुछ अच्छा कहते हैं।
सवाल- प्रेमानंद सादगी की बात करते हैं, लेकिन खुद लग्जरी गाड़ियों से चलते हैं? जवाब- किसी भक्त ने अगर कोई उपहार दिया है और उसका इस्तेमाल न किया जाए, तो अच्छा नहीं है। अगर इस्तेमाल करें, तो समस्या है। अगर नहीं करें, तो उस भक्त के मन पर क्या गुजरेगी? गुरु दक्षिणा में जो चीज मिली है, उसका प्रयोग करना गुरु का कर्तव्य है।
सवाल- आपकी कितने दिनों में प्रेमानंद से मुलाकात होती है? क्या वह मिलने आते हैं? जवाब- मन तो मिले ही रहते हैं, मन से दूर नहीं होते। वृंदावन में भीड़ इतनी हो रही है कि एक से दूसरी जगह जाना कठिन है।
ये राधावल्लभ के कपाट हैं, इसके बाएं तरफ मोहित मराल महाराज बैठते हैं।

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