सुप्रीम कोर्ट ने इमरान प्रतापगढ़ी पर दर्ज FIR रद्द की:कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं; जाने कंप्लीट प्रोफाइल
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार, 28 मार्च को कांग्रेस राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ गुजरात पुलिस द्वारा दर्ज की गई FIR को रद्द कर दिया। ये मामला उनके इंस्टाग्राम पोस्ट से जुड़ा था, जिसमें ‘ऐ खून के प्यासे बात सुनो’ कविता के साथ एक वीडियो क्लिप साझा की गई थी।
जस्टिस अभय ओका और जस्टिस उज्जल भुयान की पीठ ने इमरान प्रतापगढ़ी द्वारा दायर याचिका को मंजूरी देते हुए कहा कि उनके खिलाफ कोई अपराध बनता ही नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात पुलिस द्वारा दर्ज FIR को खारिज करते हुए कहा-

संविधान के अनुच्छेद 21 के बिना गरिमापूर्ण जीवन जीना असंभव है। भले ही बड़ी संख्या में लोग दूसरे के द्वारा व्यक्त किए गए विचारों को नापसंद करते हों, लेकिन व्यक्ति के विचार व्यक्त करने के अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति अभय ओका ने कहा कि-

साहित्य, जिसमें कविता, नाटक, फिल्में, स्टेज शोज, व्यंग्य और कला शामिल हैं, जीवन को अधिक सार्थक बनाते हैं… व्यक्तियों के विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने के अधिकार को संजोकर रखा जाना चाहिए।
इमरान का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के चमरूपुर शुक्लान शमशेरगंज गांव में हुआ था। उनकी प्राइमरी एजुकेशन गांव के ही एक नर्सरी स्कूल में हुई। फिर इंटरमीडिएट के लिए गांव से 15 किलोमीटर दूर प्रतापगढ़ शहर आ गए। उन्होंने प्रतापगढ़ में मौजूद रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के कॉलेज, केपी इंटर कॉलेज 12वीं की।
इंटरमीडिएट के बाद उन्होंने डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय से एफिलिएटेड डिग्री कॉलेज से ग्रेजुएशन (BA) किया।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने इमरान को इमरान प्रतापगढ़ी बनाया।
इमरान ने अपने मस्टर्स के लिए इलाहाबाद (अब प्रयागराज) का रुख किया। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में मास्टर्स डिग्री (MA) हासिल की।
प्रयागराज पहुंचने के बाद उन्हें ये एहसास हुआ कि शेर-ओ-शायरी में वे करियर बना सकते हैं। उनके पहले उस्ताद आद्या प्रसाद मिश्र ‘उन्मत’ थे, जिन्होंने उन्हें उर्दू शायरी की बारीकियां सिखाईं।
इमरान एक इंटरव्यू में बताते हैं कि यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट्स के फंक्शन्स में परफॉर्म करते-करते उन्हें शायर की पहचान मिलने लगी। हमारी शायरी हमें पहचान दिला रही है।
वे बताते हैं कि धीरे-धीरे उनकी शायरी विभिन्न मंचों पर जाने लगी और 200-500-1000 रुपए पेमेंट मिलने लगा। पहले मुशायरे में उन्हें 100 रुपए मिले। 10-10 के नोट थे, ताकि लिफाफा भारी लगे।
‘मदरसा’ नज्म ने पहचान दिलाई
2008 में इमरान ने औपचारिक रूप से मुशायरों में भाग लेना शुरू किया। उनकी नज्म ‘मदरसा’ ने उन्हें रातोंरात पहचान दिलाई। इस नज्म में उन्होंने मुस्लिम शिक्षा व्यवस्था और सामाजिक मुद्दों को उठाया।
इसके बाद ‘हां मैं कश्मीर हूं’, ‘फिलिस्तीन’, और ‘नजीब’ जैसी रचनाओं ने उनकी पहचान को मजबूत बनाया।
2017 में, उन्होंने दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक रक्तदान शिविर आयोजित किया, जहां लिंचिंग के खिलाफ प्रतीकात्मक विरोध के रूप में 2,816 यूनिट रक्तदान किया गया। इस विरोध प्रदर्शन का नाम ‘लहू बोल रहा है’ रखा गया था।
उत्तर प्रदेश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भी हासिल है
साल 2016 में उन्हें समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव सरकार ने ‘यश भारती पुरस्कार’ से सम्मानित किया। ये उत्तर प्रदेश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। इसके अलावा, उन्होंने बहस और कविता में 3 बार राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीते।
2018 में कांग्रेस में शामिल हुए
साल 2018 में इमरान ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने का फैसला किया। उनकी मुलाकात राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से हुई, जिसके बाद उन्हें पार्टी में जगह मिली।
मुरादाबाद सीट से लोकसभा चुनाव लड़े
साल 2019 में कांग्रेस ने उन्हें उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद सीट से लोकसभा प्रत्याशी बनाया। वे समाजवादी पार्टी के एसटी हसन से 5 लाख से अधिक वोटों (5,90,218) के अंतर से हार गए।
2019 लोकसभा चुनाव में इमरान 4.62% वोट शेयर के साथ तीसरे स्थान पर रहे।
3 जून 2021 को उन्हें ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (AICC) के अल्पसंख्यक विभाग का राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस भूमिका में उन्होंने मुस्लिम समुदाय के मुद्दों को उठाया और कांग्रेस के लिए अल्पसंख्यक वोट बैंक को मजबूत करने की कोशिश की।
महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद हैं
साल 2022 में कांग्रेस ने उन्हें महाराष्ट्र से राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया। वे 5 जुलाई, 2022 को निर्वाचित हुए और पहली बार राज्यसभा सांसद बने।
राज्यसभा में इमरान स्वास्थ्य और परिवार कल्याण समिति के अलावा वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की परामर्शदात्री (कंसल्टेटिव) समिति के सदस्य हैं।
हालांकि इस नियुक्ति पर पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं (जैसे मिलिंद देवड़ा, संजय निरूपम) ने आपत्ति जताई, लेकिन उनकी लोकप्रियता और राहुल गांधी का समर्थन उनके पक्ष में रहा।

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