ग्राउंड रिपोर्टआम लोग ही नहीं, नेता भी छोड़ रहे पुराना भोपाल:हिंदुओं के पलायन के दावे की हकीकत; लोगों ने बताई वजह
दादा जी के जमाने से हम लोग टीला जमालपुरा में रहते थे। परिवार बढ़ गया, घर पुराना हो गया। ट्रैफिक की समस्या भी थी, इसलिए एक साल पहले ही हमने नया मकान लिया और वहां शिफ्ट हो गए। ये कहना गलत है कि किसी धार्मिक वजह से हमने पुराना भोपाल छोड़ा।
ये कहना है द्वीपदित्य पवार का, जो एक साल पहले तक पुराने भोपाल के टीला जमालपुरा इलाके में रह रहे थे। इस समय उनके पुराने मकान पर ताला डला है और घर बेचने का पर्चा चिपका हुआ है। द्वीपदित्य अकेले नहीं हैं, जिन्होंने इन समस्याओं की वजह से पुराना शहर छोड़ा।
ऐसे कई लोग हैं, जो मकान छोड़कर या बेचकर नई जगह शिफ्ट हो गए हैं या होने वाले हैं। इनमें से कोई भी धार्मिक वजह से पलायन नहीं कर रहा है। दरअसल, 25 मार्च को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मध्य भारत प्रांत सरसंचालक अशोक पाण्डेय ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि पुराने भोपाल से हिंदुओं का पलायन हो रहा है।
उनके मुताबिक, पिछले तीस साल में करीब तीन हजार हिंदू परिवारों ने अपने मकान बेचे हैं, जिन्हें दूसरे समुदाय के लोगों ने खरीदा है। संघ के इस दावे की पड़ताल करने दैनिक भास्कर की टीम पुराने भोपाल के रिहायशी इलाकों में पहुंची और यहां से जा चुके या जाने की तैयारी कर रहे लोगों से बात की।
अब जानिए, संघ के दावे पर क्या कहते हैं लोग… टीला जमालपुरा: हम तो सालों से मिलजुलकर रहते हैं भास्कर की टीम सबसे पहले पहुंची टीला जमालपुरा इलाके में। यहां उजड़ा सा पार्क दिखाई दिया। पार्क में रस्सी के सहारे चारों तरफ भगवा रंग के झंडे लगे हुए थे। यहां ज्यादातर हिंदू लोग रहते हैं।
इनमें से कुछ घरों पर ताले लगे हुए थे। घरों के बाहर फॉर सेल (घर बेचने) का पर्चा चिपका हुआ था। साथ ही मोबाइल नंबर दिए गए थे। इन्हीं में से एक मकान के बाहर रामेश्वर पवार के नाम की नेम प्लेट लगी थी। पूछताछ की तो पता चला कि एक साल से मकान खाली पड़ा है।
टीला जमालपुरा में रहने वाले लोगों के घरों में ‘फॉर सेल’ का पोस्टर चिपका है।
पुराना मकान था, परिवार भी बढ़ गया इसलिए छोड़ा ‘फॉर सेल’ के पर्चे पर दर्ज मोबाइल नंबर पर फोन किया तो पवार के बेटे द्वीपदित्य पवार ने कॉल उठाया। उसने बताया कि पिछले कई साल से हम टीला जमालपुरा के मकान में रहते थे। अब 10 किलोमीटर दूर आरजीपीवी यूनिवर्सिटी के पास बनी एक कॉलोनी में शिफ्ट हो गए हैं।
भास्कर की टीम द्वीपदित्य से मिलने उनके नए मकान पर पहुंची। पूछा- मकान छोड़ने की क्या वजह रही? द्वीपदित्य ने बताया कि वो बीडीए का बहुत पुराना मकान है। उसकी हालत भी खराब हो गई है। साथ ही परिवार भी बढ़ गया है। उस इलाके में ट्रैफिक की समस्या भी है, जिसकी वजह से मकान छोड़ा।
अगला सवाल किया- क्या कोई धार्मिक वजह रही या फिर किसी के दबाव में मकान छोड़ा तो उसने कहा- टीला जमालपुरा में हिंदू और मुस्लिम दोनों ही परिवार सालों से रहते आए हैं, लेकिन किसी को भी एक-दूसरे से कोई परेशानी नहीं है।
अब ये रिहायशी नहीं, कॉमर्शियल एरिया हो गया है टीला जमालपुरा से निकलकर भास्कर टीम पुराने भोपाल के लोहा बाजार पहुंची। यहां सड़क के दोनों तरफ कपड़े की दुकानें हैं। सड़कें इतनी संकरी हैं कि टू व्हीलर का निकलना भी मुश्किल है। इसी जगह अमन जैन की दुकान है, जो पीढ़ियों से साड़ियां बेचने का कारोबार कर रहे हैं।
जैन कहते हैं- जब भोपाल की आबादी 5 हजार के आसपास थी, तब से हमारा परिवार यहां रहता है। उस समय ये भोपाल रियासत का हिस्सा होता था। शहर बढ़ता गया और ये मेन मार्केट बन गया। इसी के साथ हमारा परिवार भी बढ़ गया। परिवार बढ़ा होता गया तो घर भी अलग-अलग होते गए।
जैन की दुकान चार मंजिला है। वे बताते हैं कि पहले परिवार ऊपर की मंजिल पर रहता था। वे अपना मोबाइल दिखाते हुए कहते हैं- दुकान के भीतर नेटवर्क तक नहीं आता। यही वजह है कि लोग अब पुराने भोपाल को छोड़कर अपनी सुविधा के हिसाब से अलग-अलग जगह शिफ्ट हो रहे हैं।
पुराने भोपाल की सड़कों से टू व्हीलर निकालना भी बहुत मुश्किल है।
माता-पिता जगह छोड़ना नहीं चाहते, इसलिए मजबूरी है चौक बाजार में ही अनुभव जैन की भी कपड़े की दुकान है। दुकान के ऊपरी हिस्से में उनका मकान है। अनुभव का परिवार पिछली सात पीढ़ियों से यहीं रह रहा है। कुछ साल पहले अनुभव के छोटे भाई समेत परिवार के कई सदस्य पुराने शहर को छोड़कर नए भोपाल जा बसे हैं।
अनुभव कहते हैं- मां और पिताजी इस जगह को छोड़ना नहीं चाहते, इसलिए हम लोग भी मजबूरी में रह रहे हैं। ऐसा नहीं है कि हमें यहां रहना अच्छा नहीं लगता, लेकिन अब ये जगह रहने लायक नहीं बची है। न तो कार पार्किंग की जगह है और न ही बच्चों के लिए खेलने का कोई मैदान।
अच्छी सुविधाओं के लिए पुराना घर छोड़ा लालघाटी के रहने वाले अक्षत मंगल पहले पुराने भोपाल में गुज्जरपुरा में रहते थे। वे कहते हैं- 100 साल से परिवार उसी जगह रह रहा था। धीरे-धीरे सदस्यों की संख्या बढ़ती और जगह छोटी होती गई। अब यहां कोई जगह नहीं बची है। हर व्यक्ति को हाईटेक लग्जरी सुविधाएं चाहिए। उसी हिसाब से दस साल पहले हम लालघाटी शिफ्ट हो गए थे।
अभी पढ़ा कि पुराने भोपाल से हिंदू दूसरे समुदाय की वजह से पलायन कर रहे हैं, लेकिन हमारा परिवार तो कई सालों तक पुराने भोपाल में रहा। हमने कभी ऐसी परेशानी महसूस नहीं की। अभी भी हमने गुज्जरपुरा वाला घर नहीं बेचा है।
बेटों के पास विदेश जा रहे इसलिए बेच रहे घर रेतघाट में रहने वाले 78 साल के बृजमोहन राठौर अपना घर बेचने के लिए खरीदार ढूंढ रहे हैं। बृजमोहन कहते हैं- मैं और पत्नी ही यहां रहते हैं। एक बेटा लंदन और दूसरा मेलबर्न में रहता है। दोनों की अच्छी जॉब है। अब हमारी उम्र हो चुकी हैं। बेटे मिलने आते हैं तो एक बार में 21 लाख रुपए खर्च होते हैं। वो भी जिद कर रहे हैं कि आप हमारे पास ही रहिए, इसलिए घर बेच रहे हैं।
केवल हिंदू नहीं, मुस्लिम भी छोड़ रहे पुराना शहर हिंदू, जैन और सिंधी परिवारों के साथ ऐसे कई मुस्लिम परिवार भी हैं, जो ओल्ड सिटी के अपने पुराने घर को छोड़कर भोपाल की नई कॉलोनियों में जा रहे हैं। टीला जमालपुरा में रहने वाले साहिल खान उन्हीं में से एक हैं। साहिल ने एयरपोर्ट के पास बनी एक कॉलोनी में नया मकान खरीद लिया है।
वे कहते हैं- हम पीढ़ियों से यही रहते थे, लेकिन अब परिवार बड़ा हो चुका है। हमें ज्यादा बड़े घर की जरूरत है। साथ ही ये इलाका अब बहुत संकरा हो चुका है। आए दिन ट्रैफिक जाम होता है।
साहिल की बात को आगे बढ़ाते हुए टीला जमालपुरा के सामाजिक कार्यकर्ता नीतीश लाल कहते हैं- पलायन दोनों समुदायों का हो रहा है। यहां से 70 फीसदी हिंदू जा रहे हैं तो 10 फीसदी मुस्लिम भी छोड़ रहे हैं। इसकी मुख्य वजह विकास न होना है।
यहां ट्रैफिक मैनेजमेंट नहीं है। अतिक्रमण बड़ी समस्या है। बगल वाली बिल्डिंग और मकान किसका है, किसी को नहीं पता। पहले मेरे पास एक कार थी। बच्चे बड़े हो गए तो उन्होंने नई कार खरीद ली। अब गाड़ियां खड़ी करने की जगह नहीं है।
एक साल में 500 से ज्यादा लोगों ने दूसरी जगह घर खरीदा भोपाल में ओल्ड सिटी में प्रॉपर्टी ब्रोकिंग का काम करने वाले भारत ज्ञानचंदानी कहते हैं- सिटी का बहुत सा हिस्सा अब कॉमर्शियल हो गया है। नई पीढ़ी भी अब यहां रहना नहीं चाह रही है।
पिछले एक साल में मैंने पुराने भोपाल के 500 से ज्यादा लोगों को नए भोपाल में अलग-अलग हिस्सों में मकान दिलाए हैं। हिंदू, जैन और सिंधी परिवारों के साथ कई मुस्लिम परिवारों ने भी सिटी के बाहर अपना घर खरीदा है। जगह छोड़ने की अपनी सबकी अलग-अलग वजहें हैं।
लोग ही नहीं, नेता भी दूसरी जगह शिफ्ट हो गए हैं उत्तर भोपाल विधानसभा में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता गोपाल मुखरैया से जब पलायन का सवाल पूछा तो बोले- यहां जनता ही नहीं, नेता भी पलायन कर रहे हैं। पूर्व विधायक रमेश शर्मा यहां से विधायक रहे हैं। अब उनका परिवार अरेरा कॉलोनी में शिफ्ट हो गया है। विधायक रामेश्वर शर्मा का पुराना मकान इब्राहिमगंज में है। वह पुराने भोपाल से पार्षद भी रह चुके हैं, मगर नए भोपाल में रहते हैं।
मंत्री विश्वास सारंग टीला जमालपुरा से पार्षद रहे, शीशमहल में उनका मकान है। अब नए भोपाल में मकान बना लिया है। सांसद आलोक शर्मा का मकान गुज्जरपुरा में था। दो साल पहले उन्होंने ईदगाह हिल्स में अपना नया मकान बना लिया है। पूर्व सीएम बाबूलाल गौर का परिवार बरखेड़ी में रहता था, अब वे नए भोपाल में रहते हैं।
आरएसएस के पदाधिकारी बोले- सर्वे नहीं, सामाजिक अध्ययन आरएसएस के एक पदाधिकारी कहते हैं- हमने सर्वे नहीं, सामाजिक अध्ययन किया है। हमारी शाखा के स्वयंसेवक लोगों से मिलते हैं, उनसे संवाद करते हैं। उनकी समस्याओं को जानते हैं। इस अध्ययन से प्रदेशभर में 100 से ज्यादा मुद्दे निकलकर सामने आए हैं। इनमें मोबाइल गेम की लत, लव जिहाद, मुस्लिम आक्रामकता और पलायन जैसे मुद्दे हैं। भोपाल से पलायन की समस्या सामने आई है।
भास्कर ने उन्हें बताया कि लोगों से बात करने पर ऐसी कोई समस्या सामने नहीं आई, तो वे बोले– मेरे परिचित पहले पुराने भोपाल में रहते थे। जैसे ही उनकी बेटियां बड़ी हुईं, उन्होंने मकान खाली कर दिया। वो नए भोपाल में तब तक किराए के मकान में रहे जब तक कि पुराना मकान बिक नहीं गया। हालांकि, ये काफी पुरानी बात है।
वे आगे कहते हैं- जिन हिंदुओं ने मकान छोड़ा, वो समृद्ध थे। अभी भी वहां कई हिंदू परिवार हैं, जो जाना चाहते हैं मगर वे आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं। हमारे हिसाब से उन्हें उसी जगह रहना चाहिए। छोटी-छोटी समस्याओं को मिलजुलकर और संवाद के जरिए दूर किया जा सकता है।

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