महाराष्ट्र में सरकार गठन के बाद महायुति में किन मुद्दों पर हो रहा है तनाव ?

महाराष्ट्र में चुनाव के बाद महायुति में सबसे बड़ा मुद्दा मुख्यमंत्री पद को लेकर रहा। राजनीतिक विश्लेषक समीर चौगांवकर के मुताबिक, महाराष्ट्र विधानसभा के जब चुनाव हुआ तो महायुति ने किसी को भी मुख्यमंत्री घोषित नहीं किया था। ऐसे में एकनाथ शिंदे को लग रहा था कि महायुति चुनाव जीतने के बाद उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाएगी। हालांकि, जिस तरह चुनाव में भाजपा की 132 सीटें आ गईं और अजित पवार की पार्टी ने भी बेहतरीन प्रदर्शन कर दिया।
इन स्थितियों के बीच भाजपा और शिवसेना में कुछ तनाव देखने को मिला। एकनाथ शिंदे इस दौरान अपने गांव चले गए थे। खुलकर तो दोनों ही पार्टियों ने सीएम पद को लेकर एक-दूसरे के खिलाफ बयान नहीं दिए, लेकिन उनका डिप्टी सीएम बनने के लिए साफ संकेत न देने और लंबे समय तक शपथग्रहण के लिए मुंबई न लौटने से यह साफ था कि महायुति में सब ठीक नहीं है।
राजनीतिक विश्लेषक चौगांवकर के मुताबिक, जब भाजपा ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बना दिया, तब एकनाथ शिंदे इसके बाद चाहते थे कि गृह मंत्रालय उनकी पार्टी को दिया जाए। लेकिन भाजपा ने गृह मंत्रालय भी उन्हें नहीं दिया। उनके कई अच्छे मंत्री, जैसे दीपक केसरकर को भी भाजपा ने मंत्रीपद देने से इनकार कर दिया। ऐसे में एकनाथ शिंदे को लग सकता है कि उन्हें महायुति में अलग-थलग किया जा रहा है। क्योंकि अजित पवार की पार्टी के पास उतनी सीटें आ गई थीं, जितनी राज्य में भाजपा की सरकार बनाने के लिए काफी थी। यानी अगर एकनाथ शिंदे सरकार में नहीं रहते तो भी भाजपा अजित पवार की मदद से आसानी से सरकार चला सकती है।
भाजपा और शिवसेना) के बीच जिलों के प्रभारी मंत्रियों की नियुक्तियों को लेकर संघर्ष देखने को मिला है। शिंदे गुट सत्ता के बंटवारे से असंतुष्ट नजर आया है। महाराष्ट्र में कैबिनेट मंत्री की तरह ही जिलों के प्रभारी मंत्री के पद को लेकर प्रतियोगिता रहती है। पिछले महीने ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने राज्य के 36 जिलों के प्रभारी मंत्रियों की घोषणा कर दी थी। इस बार विवाद मुख्यतः दो जिलों में- रायगढ़ और नासिक में नियुक्तियों पर केंद्रित रहा।
दरअसल, महाराष्ट्र सरकार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की अदिति तटकरे को रायगढ़ और भाजपा के गिरीश महाजन को नासिक जिले का प्रभारी मंत्री नियुक्त किया। हालांकि, करीब एक दिन बाद ही सरकार ने इस फैसले को वापस ले लिया। तब सामने आया था कि डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे इन नियुक्तियों से नाराज हैं, जो कि अपनी पार्टी से मंत्री भरत गोगावले और दादाजी भुसे को इन जिलों के प्रभारी मंत्री के तौर पर चाहते थे। बताया जाता है कि प्रभारी मंत्रियों की लिस्ट जाने के ठीक बाद ही एकनाथ शिंदे सतारा में अपने पैतृक गांव पहुंच गए। बताया जाता है कि शिंदे की इस नाराजगी को खत्म करने के लिए ही फडणवीस ने बाद में रायगढ़ और नासिक में नियुक्तियों को टाल दिया।
सीएम देवेंद्र फडणवीस ने बीते हफ्ते ही 20 से अधिक शिवसेना नेताओं की सुरक्षा में बदलाव किया था। उनकी सुरक्षा को वाई+ श्रेणी से घटा दिया गया था। वहीं कुछ और शिवसेना नेताओं की सुरक्षा वापस ले ली गई थी। अक्तूबर 2022 में शिंदे के सीएम बनने के बाद, जिन 44 विधायकों और 11 लोकसभा सदस्यों ने शिंदे का समर्थन किया था, उन्हें वाई+ सुरक्षा कवर दिया गया था।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, सीएम के मंत्रियों को छोड़कर बाकी सभी विधायकों की सुरक्षा घटा दी। कई पूर्व सांसदों से भी सुरक्षा वापस ले ली गई। इनमें भाजपा और राकांपा के कुछ नेता, शिवसेना से जुड़े लोग, और अन्य सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं। शिवसेना की तरफ से इस कदम को लेकर कोई प्रतिक्रिया तो नहीं दी गई, लेकिन मराठी मीडिया में एकनाथ शिंदे की नाराजगी की बातें सामने आईं।
कुछ खबरों के मुताबिक, पिछले महीने डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे ने नासिक मेट्रोपॉलिटन क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण की बैठक छोड़ दी थी। इस बैठक को सीएम फडणवीस ने बुलाया था। रिपोर्ट्स में कहा गया कि बाद में शिंदे ने खुद इस विषय पर अपनी समीक्षा बैठक की।
हाल ही में शिंदे ने मंत्रालय में एक नया डिप्टी सीएम का मेडिकल एड सेल स्थापित किया और अपने करीबी सहयोगी को इसका प्रमुख नियुक्त किया। यह पहली बार है जब किसी डिप्टी सीएम ने सीएम रिलीफ फंड सेल के बावजूद ऐसा सेल स्थापित किया है। इस बात से फडणवीस के समर्थकों में भी बातें तेज है।
समीर चौगांवकर के मुताबिक, हो सकता है कि एकनाथ शिंदे को लगने लगा कि मैंने ज…