काशी में जलती चिता की राख से होली:गले में नरमुंड, जिंदा सांप मुंह में दबाकर नृत्य; एक चुटकी भस्म के लिए घंटों इंतजार


कल काशी में मसान की होली खेली जाएगी। इस दिन सड़कें श्मशान की राख से पटी रहती हैं। कोई चेहरे पर क्रीम-पाउडर की तरह राख थोपा रहता है, तो कोई चिता भस्म में खुद को डुबो लेता है। किसी गले में नर कंकाल, रुद्राक्ष की मानिंद हिलोरे लेती हैं। कोई जिंदा सांप में मुंह में रस्सी की तरह दबाकर नृत्य का हुनर दिखाता है।अघोरियों के शरीर पर जानवरों की खाल खद्दर की तरह लिपटी है और वो रमता जोगी की तरह डमरू की ताल पर थिरक रहे हैं। एक तरफ चिताओं से उठता धुआं है, दूसरी तरफ राख की होली…यहां रंज-ओ गम और जश्न का गुलाल है। यानी खुशी और गम साथ-साथ।
आम इंसान जो चिता की राख से दूर भागता है, वो भी इस दिन इसे प्रसाद मानकर एक चुटकी राख के लिए घंटों इंतजार कर रहा है। भीड़ इतनी कि पैर रखने तक की भी जगह नहीं है।काशी में होली से 4-5 दिन पहले ही मसान होली की शुरुआत हो जाती है। इसके लिए न सिर्फ देशभर से बल्कि बड़ी संख्या में विदेशी भी यहां मसान होली खेलने आते हैं। यही वजह है काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास एक भी होटल या गेस्ट हाउस खाली नहीं मिलते।
रास्ते में जगह-जगह अघोरी बाबा करतब दिखा रहे हैं। कोई हाथ में नाग लेकर घूम रहा है, तो कोई आग से खेल रहा। चिता की भस्म हवा में इस तरह घुली है कि दूर-दूर तक मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा।
हरिश्चंद्र घाट पर दिन-रात शव जलते रहते हैं। यहां के मुख्य आयोजक पवन कुमार चौधरी हैं। वे डोमराजा कालूराम के वंशज हैं। मसान होली को लेकर पवन चौधरी एक पौराणिक कथा सुनाते हैं।
‘राजा हरिश्चंद्र हमारे बाबा कालू राम डोम के हाथों इसी जगह पर बिके थे। उनकी पत्नी भी कालू राम डोम के यहां काम करने लगी थीं। जब राजा हरिश्चंद्र ने अपनी पत्नी तारा से अपने बेटे के अंतिम संस्कार के लिए भी कर चुकाने को कहा, तो तारा ने अपनी साड़ी फाड़कर कर चुकाया।
उस दिन एकादशी थी। राजा की इस सत्यवादिता को देखकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और कहने लगे कि राजा तुम अपनी तपस्या में सफल हुए। तुम अमर रहोगे और यह दुनिया तुम्हें सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के नाम से जानेगी।
भगवान विष्णु के पादुका निशान आज भी हरिश्चंद्र घाट पर हैं। इसी स्थान से चिता भस्म होली की शुरुआत की जाती है।’मणिकर्णिका घाट के डोम लोकेश चौधरी बताते हैं, ‘रंगभरी एकादशी के दिन शिव जी, माता पार्वती का गौना कराकर लाए थे। इसके बाद उन्होंने काशी में अपने गणों के साथ रंग-गुलाल की होली खेली, लेकिन वे श्मशान में बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच, किन्नर और अन्य जीव जंतुओं आदि के साथ होली नहीं खेल पाए थे।
इसलिए रंगभरी एकादशी के एक दिन बाद महादेव ने श्मशान में बसने वाले भूत-पिशाचों के साथ होली खेली थी। तभी से यहां मसान होली खेली जाती है।’
हरिश्चंद्र घाट पर शिव जी का एक मंदिर है। इसे मसान मंदिर कहा जाता है। यहां सुबह से ही उत्सव का माहौल है। शिवलिंग पर दूध, दही, शहद, फल, फूल, माला, धतूरा, गांजा, भस्म चढ़ाई जा रही है। पांच पुजारी रुद्राभिषेक करा रहे हैं। इसके बाद बाबा को धोती और मुकुट पहनाया जाता है। साल में एक ही दिन बाबा मसान मुकुट पहनते हैं।
इसके लिए एक रथ सजाया गया है। उस पर एक लड़के को शिव और एक लड़की को पार्वती बनाकर बिठाया जाता है। फिर चिता के सामने उनकी पूजा की जाती है। इसके बाद झांकी निकलती है।
झांकी में कीड़े-मकौड़े, सांप-बिच्छू लिए औघड़ देखते ही बनते हैं। इसमें महिलाएं भी पीछे नहीं हैं। सिर पर मुकुट, हाथ में त्रिशूल, कटार, मुंह पर काला रंग और लाल रंग की बाहर लटकती जीभ। मानो साक्षात काली यहां उतर आई हैं।
डीजे पर भक्ति गाने बज रहे हैं। ‘होली खेले मसाने में…काशी में खेले, घाट में खेले, खेले औघड़ मसाने में