तेलंगाना टनल हादसा, हर मिनट गिर रहा 5000 लीटर पानी:13 दिन बीते, अंदर फंसे 8 वर्कर्स का पता नहीं; बचने की सिर्फ 1% उम्मीद
’13 दिन हो गए, मेरे भाई संदीप की कोई खबर नहीं है। बस इतना पता है कि जिस टनल में संदीप काम कर रहा था, वो धंस गई है। वो घर में इकलौता कमाने वाला है। डेढ़ साल पहले टनल प्रोजेक्ट में काम करने गया था। 17 हजार रुपए महीने तनख्वाह मिलती थी। पिछले साल अगस्त में रक्षाबंधन पर घर आया था। तभी से उसे नहीं देखा।’
झारखंड के रहने वाले संदीप साहू की बहन संदीपा बीते 13 दिन से परेशान हैं। सिर्फ संदीप ही नहीं, उन 7 वर्कर्स के परिवार भी चिंता में है, जो तेलंगाना के नागरकुर्नूल में बन रही श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल (SLBC) टनल में फंसे हैं।
ये हादसा 22 फरवरी की सुबह हुआ। सुरंग की छत का एक हिस्सा अचानक ढह गया। तब टनल में करीब 50 मजदूर काम कर रहे थे। इनमें से 42 बाहर निकल आए, एक इंजीनियर समेत 8 लोग टनल में ही फंस गए। उन्हें बचाने के लिए NDRF और रैटमाइनर्स की टीमें जुटी हुई हैं।
ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार टेक्नीक से फंसे लोगों की तलाश की जा रही है। टनल से तेज बदबू आ रही है, इससे अनहोनी की आशंका भी है। रेस्क्यू ऑपरेशन में सबसे बड़ी चुनौती टनल में लगातार बढ़ता सिल्ट (गाद) और पानी का लेवल है। तेलंगाना सरकार के मुताबिक, टनल में फंसे मजदूरों के बचने की उम्मीद सिर्फ 1% है।
SLBC टनल प्रोजेक्ट आखिर क्या है, 44 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाने की जरूरत क्यों पड़ी, प्रोजेक्ट में कितना फायदा-कितना जोखिम है, रेस्क्यू ऑपरेशन अभी और कितने दिन चल सकता है? इन सभी सवालों का जवाब जानने के लिए दैनिक भास्कर ने प्रोजेक्ट से जुड़े अधिकारियों और माइनिंग एक्सपर्ट्स से बात की।
देश की सबसे लंबी अंडर वॉटर टनल बनने की कहानी… 1978 की बात है। देश में जनता पार्टी की सरकार थी। मोरारजी देसाई PM थे। उस वक्त आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चेन्ना रेड्डी ने भारत के सबसे बड़े वॉटर टनल प्रोजेक्ट का प्रस्ताव रखा। प्रोजेक्ट को हरी झंडी मिलने के बाद रेड्डी सरकार ने सर्वे कमेटी बनाई।
कमेटी ने दो साल कृष्णा नदी और नल्लामाला फॉरेस्ट रिजर्व के पास सुरंग बनाने के लिए जमीन की स्टडी की। प्रोजेक्ट का फोकस कृष्णा नदी के पानी को पहाड़ी जिलों की तरफ मोड़ना है, ताकि वहां पीने के पानी की दिक्कत खत्म हो और खेती में मदद मिले।
1980 में आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री तंगुतुरी अंजैया बने। उन्होंने टनल प्रोजेक्ट के लिए 3 करोड़ रुपए जारी किए, लेकिन कंस्ट्रक्शन शुरू नहीं हो सका। 1983 में NTR मुख्यमंत्री बने। उन्होंने प्रोजेक्ट जल्द शुरू करने के लिए इसे दो हिस्सों लेफ्ट बैंक और राइट बैंक कैनाल में बांट दिया। फिर भी सुरंग का काम अटकता रहा।

टनल में बार-बार पानी भरने की वजह से रेस्क्यू ऑपरेशन में मुश्किलें आ रही हैं। NDRF, SDRF, सेना, दक्षिण मध्य रेलवे, रैट माइनर्स और दूसरी एजेंसियां रेस्क्यू में जुटी हुई हैं।
काम शुरू न हो पाने की बड़ी वजह सुरंग बनने की जगह थी। सुरंग के जरिए जिन इलाकों में पानी मोड़ा जाना था, वो जगह नल्लामाला फॉरेस्ट रिजर्व में आती है। वन्यजीवों के लिए संरक्षित जमीन पर खुदाई करना पर्यावरण कानूनों के खिलाफ था। 2004 में आंध्रप्रदेश में वाईएस राजशेखर रेड्डी की सरकार बनी। उन्होंने फिर से इस रुके प्रोजेक्ट को शुरू करने के लिए केंद्र को चिट्ठी लिखी।
तेलंगाना सिंचाई विभाग के रिटायर्ड चीफ इंजीनियर टी. सुंदर रेड्डी कहते हैं, ‘YSR सरकार में पहली बार केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इस प्रोजेक्ट के लिए हामी भरी। केंद्र ने राज्य सरकार को इस शर्त पर टनल बनाने की मंजूरी दी कि इससे नल्लामाला फॉरेस्ट रिजर्व को नुकसान न हो। अगस्त 2005 में राज्य सरकार ने 2,813 करोड़ रुपए की लागत से SLBC सुरंग प्रोजेक्ट के निर्माण को मंजूरी दे दी।’
सुरंग में ऊपरी स्लैब से हर मिनट 5 से 8 हजार लीटर पानी आ रहा हमने तेलंगाना के सोशल एक्टिविस्ट नैनाला गोवर्धन से बात की। वो सरकार की कालेश्वरम लिफ्ट सिंचाई योजना में गड़बड़ी और SLBC प्रोजेक्ट में बरती गई लापरवाही के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं।
गोवर्धन कहते हैं, ‘तेलंगाना राज्य बनने के बाद भी SLBC टनल प्रोजेक्ट को के. चंद्रशेखर राव की सरकार ने नजरअंदाज कर दिया। उनकी पार्टी BRS 10 साल सत्ता में रही, लेकिन सिर्फ 11 किलोमीटर सुरंग की खुदाई हो सकी। दिसंबर 2023 में रेवंत रेड्डी CM बने। उन्होंने टनल बनाने के लिए तय बजट 3,152 करोड़ रुपए को बढ़ाकर 4,600 करोड़ रुपए कर दिया।’
टनल के ऊपरी स्लैब से हर मिनट 5 से 8 हजार लीटर पानी गिर रहा है। इस खतरे का सही अनुमान लगाने में रॉबिन्सन और जेपी जैसी कंपनियां ही नहीं, तेलंगाना सिंचाई विभाग भी फेल रहा है। यही SLBC प्रोजेक्ट की सबसे बड़ी नाकामी है।
नैनाला गोवर्धन के मुताबिक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की कालेश्वरम डैम प्रोजेक्ट और पोलावरम सिंचाई योजना में नियमों की अनदेखी हुई। यहां 460 करोड़ की लागत से बनी डायफ्रॉम वॉल ध्वस्त हो गई। मेडिगड्डा और अन्नारम में करोड़ों की विदेशी मोटर टूट चुकी हैं। अब यही चीजें SLBC टनल प्रोजेक्ट में सामने आ रही हैं।’
‘अगर इसका काम समय से पूरा हो जाता, तो इससे देवरकोंडा, नकीरेकल, नलगोंडा, नार्केटपल्ली मंडलों के लाखों एकड़ खेतों तक पानी पहुंच जाता। साथ ही 500 से ज्यादा फ्लोरोसिस प्रभावित गांवों को पीने का पानी मिलता।‘
SLBC खतरनाक सुरंग कैसे बन गई SLBC सुरंग देश में बनने वाली रेलवे या रोड टनल से बिल्कुल अलग है। इसका रास्ता फॉरेस्ट रिजर्व से होकर जाना था। इसलिए सरकारों ने इसे अंडरग्राउंड वाटर टनल की तरह बनाने का फैसला लिया। ये सुरंग ग्रेविटी बेस्ड प्रोजेक्ट की तरह बन रही है। ग्रेविटी बेस्ड टनल में सुरंग के रास्ते पानी ऊपरी इलाकों से निचले इलाकों की तरफ लाया जाता है।
सुरंग में बीते 4 साल से बड़े पैमाने पर पानी, कीचड़ और मिट्टी नीचे की ओर गिर रही है। ऐसी समस्या किसी भी सुरंग में नहीं देखी जाती। SLBC में टनल बोरिंग मशीन से खुदाई शुरू हुई, तो वहां पहले से मौजूद शियर जोन (प्राकृतिक जलाशय) अस्थिर हो गया। ये अब भयंकर आपदा में बदल गया है।
यही वजह है कि जहां सुरंग की खुदाई हो रही है, उस इलाके की मिट्टी में पानी मिल रहा है। इससे जमीन ‘ढीली’ पड़ चुकी है। ऐसे में जरा सी हलचल से भी सुरंग ढह सकती थी। बोरिंग मशीनों ने काम शुरू किया, तो सुरंग के ऊपरी स्लैब की मिट्टी और ज्यादा अस्थिर हो गई।
लखनऊ यूनिवर्सिटी में जियोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर और माइनिंग-टनल साइंस के एक्सपर्ट राजेश सिंह कहते हैं, ‘SLBC एक इंक्लाइंड टनल है। इसका ज्यादातर हिस्सा झुका हुआ है। ऐसे में इसकी सतह पर ऊपरी छोर से गिरने वाला पानी ज्यादा तेज रफ्तार से नीचे की ओर आता है।’
पानी का ग्रेविटेशनल फोर्स बहुत ज्यादा है। इसकी वजह से सुरंग की सतह पर हमेशा खतरा बना रहता है।