संविधान विरोधी वक्फ संशोधन कानून को वापस लेना होगा । भकपा माले
राज्यव्यापी कार्यक्रम के तहत बिहारशरीफ में भाकपा माले जिला कार्यालय, कमरुद्दीनगंज से एक वक्फ संशोधन कानून के विरोध में मार्च निकाला गया । इस अवसर पर सुरेन्द्र राम ने कहा कि पहलगाम में हुआ भयानक आतंकी हमले ने एक बार फिर हमें आतंकवाद की क्रूरता का सामना करने को मजबूर कर दिया है. नेपाल के एक पर्यटक और स्थानीय घोड़ा चालक सहित 26 पर्यटकों की नृशंस हत्या ने दुनिया को स्तब्ध कर दिया है. इस जघन्य अपराध के गुनहगारों को सज़ा दिलाना ज़रूरी है. साथ ही यह भी ज़रूरी है कि उन तमाम चूकों और लापरवाहियों की जवाबदेही तय की जाए, जिनकी वजह से हमलावरों ने बेधड़क लोगों को मार डाला और बिना रोक-टोक भाग निकले. जब यूपीए सरकार सत्ता में थी, तब गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी जम्मू-कश्मीर में हर आतंकी हमले के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से जवाब माँगते थे. एक वीडियो में नरेंद्र मोदी मनमोहन सिंह से पूछते हैं कि आतंकवादी सीमा पार करके लोगों को कैसे मार सकते हैं, जबकि दिल्ली की सत्ता को देश की सीमाओं, धन के प्रवाह, सूचना और संचार पर पूरा नियंत्रण हासिल है. यह वीडियो पिछले एक दशक से लाखों बार देखा जा चुका है. पहलगाम हमला घाटी में पर्यटकों पर इस पैमाने का पहला हमला है. आज वही सवाल और ज्यादा प्रासंगिक हैं, पर प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी उनके ही पुराने सवालों का मज़ाक उड़ाती सी लगती है, जो कभी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने पूछे थे. जम्मू-कश्मीर अब एक केंद्र शासित प्रदेश है, जिसका मतलब है कि यहाँ क़ानून-व्यवस्था की पूरी ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार की है. आतंकवाद से निपटने के लिए बनी केंद्रीय कमान की अगुवाई चुने हुए मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त उपराज्यपाल करते हैं. 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले से ठीक दो हफ्ते पहले, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा के लिए राज्य का दौरा किया था, लेकिन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को उस बैठक में शामिल नहीं किया गया. बैठक के बाद अमित शाह ने मीडिया को बताया था कि मोदी सरकार ने कश्मीर को आतंकवाद से मुक्त कर दिया है और राज्य में सामान्य स्थिति बहाल कर दी है. आज, पहलगाम त्रासदी की सीधी ज़िम्मेदारी गृह मंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को लेनी चाहिए. न सिर्फ जवाबदेही तय होनी चाहिए, बल्कि ज़िम्मेदारों को अपने पद भी छोड़ने चाहिए. मगर ज़िम्मेदारी से पलटना और जवाब देने से इनकार करना मोदी सरकार की पहचान बन चुका है. अब खबरें आ रही हैं कि सरकार को इस आतंकी हमले की संभावना के बारे में पहले से ही खुफिया इनपुट मिल चुके थे. इस बात को और बल तब मिलता है जब यह तथ्य सामने आता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 19 अप्रैल को प्रस्तावित जम्मू-कश्मीर यात्रा आख़िरी समय में रद्द कर दी गई थी. रिपोर्टों के मुताबिक, हमला करने वाले आतंकी कई दिनों से इलाके में मौजूद थे और उन्होंने पूरी तैयारी के साथ अपनी योजना को अंजाम दिया. सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि एक ऐसे राज्य में, जहाँ सुरक्षा बलों की भारी तैनाती रहती है, वहाँ लगभग दो हज़ार पर्यटकों को बिल्कुल असुरक्षित हालत में छोड़ दिया गया — न पुलिस की मौजूदगी थी, न सेना की. यह एक अक्षम्य चूक है. पीड़ित परिवारों, सुरक्षा विशेषज्ञों और कश्मीर पर नज़र रखने वालों ने इस गंभीर खुफिया और सुरक्षा नाकामी की ओर साफ़ इशारा किया है. लेकिन सरकार और मुख्यधारा मीडिया इस पर जानबूझकर चुप्पी साधे हुए हैं इंसाफ मंच नालन्दा के संयोजक सरफराज अहमद खान, अधिवक्ता ने कहा कि वक्फ संशोधन कानून 2025 संविधान विरोधी है ,यह मुस्लिम समुदाय के मामले में जबर्दस्ती दखलदांजी है, इसे हर हालत में वापस लेना होगा कार्यक्रम में शामिल थे इंडियन नेशनल लीग के उपाध्यक्ष वरिष्ट अधिवक्ता एकबालु ज़फ़र साहब ,सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता जाहिद अंसारी समेत इंसाफ मंच के उपाध्यक्ष नसीरुद्दीन माले नेता पाल बिहारी लाल, अरुण यादव, सुनील कुमार, मकसूदन शर्मा, माले नेता अधिवक्ता अनिल पटेल, प्रमोद यादव, मुन्नीलाल यादव, रामदास अकेला, रविन्द्र पासवान, ऐपवा जिलाध्यक्ष गिरिजा देवी, रेणुदेवी,सुलताना प्रवीण, यासमीन प्रवीण, निरंजन भारती, शिवशंकर प्रसाद, रामधारी दास, रामप्रीत केवट, फैसल असमानी, मो0 फसीह, मो0 फैजात, मो० जहूर, मो0 कमालुद्दीन बीरेश, बाढ़न, राजेश,शत्रुधन, प्रो0 शैलेश यादव आदि सैकड़ों लोग मौजूद थे । सभी नेताओं ने अपने संबोधन में एक स्वर मे कहा कि संविधान विरोधी वक्फ संशोधन कानून की वापसी तक यह संघर्ष तेज किया जाएगा।

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