P4 विवाद: जब पुलिस और पत्रकार आमने-सामने हों, तो सच की रोशनी सबसे ज़रूरी होती है
भिंड जिले में पुलिस और कुछ पत्रकारों के बीच उपजा विवाद अब एक संवेदनशील मुद्दा बनता जा रहा है। हाल ही में एक कथित पत्रकार द्वारा पुलिस प्रशासन विशेषकर एसपी डॉ. असित यादव पर मारपीट जैसे गंभीर आरोप लगाए गए, जिसने प्रशासनिक हलकों के साथ-साथ मीडिया जगत को भी हिलाकर रख दिया। लेकिन जैसे-जैसे तथ्यों की परतें खुलती जा रही हैं, मामला सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप से कहीं अधिक जटिल और विचारणीय प्रतीत होता है।एसपी डॉ. असित यादव पर आरोप: क्या यह सच है या किसी और मंशा की बुनियाद?डॉ. असित यादव, जो कि भिंड के वर्तमान पुलिस अधीक्षक हैं, जिले में अपनी निष्पक्ष कार्यशैली, जनसंपर्क में तत्परता और कानून-व्यवस्था के पालन के लिए जाने जाते हैं। उनके खिलाफ लगाए गए मारपीट के आरोपों की अब तक कोई ठोस पुष्टि नहीं हुई है। दूसरी ओर, सूत्रों से यह भी जानकारी मिली है कि यह पूरा प्रकरण उस समय शुरू हुआ जब एक कथित पत्रकार द्वारा किसी मामले को लेकर दबाव बनाने की कोशिश की गई थी।रविकांत गोयल ‘बेजोड़ रत्न’ पर पहले से लगे हैं गंभीर आरोप इस प्रकरण में जिन पत्रकार महोदय ने पुलिस पर आरोप लगाए हैं, उनकी पृष्ठभूमि भी चर्चा में है। डॉ. रामकरण गौतम द्वारा थाना उमरी में एक शिकायत दर्ज कराई गई है, जिसमें यह आरोप है कि रविकांत गोयल नामक व्यक्ति पत्रकारिता की आड़ में लोगों को डरा-धमका कर अवैध वसूली का काम करता है। यह शिकायत स्वतंत्र जांच का विषय है, और यदि यह आरोप सिद्ध होते हैं, तो यह न केवल पत्रकारिता के लिए चिंता की बात होगी, बल्कि प्रशासन पर अनावश्यक दबाव की कोशिश भी मानी जा सकती है।लोकतंत्र में संवाद आवश्यक, टकराव नहीं पत्रकार और पुलिस दोनों ही लोकतंत्र के अनिवार्य स्तंभ हैं। दोनों की भूमिका समाज के लिए सेवा और सुरक्षा की है। लेकिन जब इनके बीच अविश्वास की दीवार खड़ी हो जाए, तो सबसे अधिक नुकसान आम जनता को होता है। यह आवश्यक है कि संवाद के रास्ते खुले रखें जाएं, और हर पक्ष की बात को सुना जाए, समझा जाए और जांच की जाए।
प्रशासन और प्रेस – दोनों को निभानी है जिम्मेदारी एसपी डॉ. असित यादव का अब तक का कार्यकाल यह दर्शाता है कि वे संवाद में विश्वास रखते हैं और मीडिया की सकारात्मक भूमिका को महत्व देते हैं। वहीं मीडिया जगत को भी यह तय करना होगा कि वह अपने बीच उन चेहरों को छांटे जो पत्रकारिता के नाम पर पेशे की गरिमा को नुकसान पहुँचा रहे हैं।यह भी उतना ही आवश्यक है कि किसी भी आरोप या शिकायत पर बिना पुष्टि के किसी की छवि को धूमिल न किया जाए – चाहे वह पत्रकार हो या पुलिस अधिकारी।
सच की तह तक पहुँचना ही पत्रकारिता का धर्म यह पूरा विवाद एक अवसर है कि हम पत्रकारिता और पुलिस प्रशासन दोनों में पारदर्शिता और ज़िम्मेदारी को लेकर एक ईमानदार चर्चा करें। अगर कोई अधिकारी दोषी है तो उसे जवाबदेह ठहराना चाहिए, लेकिन अगर कोई पत्रकार अपने पद का दुरुपयोग कर रहा है, तो उस पर भी उतनी ही गंभीरता से कार्रवाई होनी चाहिए।डॉ. असित यादव पर लगाए गए आरोपों की निष्पक्ष जांच ज़रूरी है ताकि न केवल उनका पक्ष स्पष्ट हो सके, बल्कि प्रशासन और मीडिया दोनों के बीच पारस्परिक विश्वास भी बहाल हो सके।

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