84 कोसी परिक्रमा का आज आखिरी पड़ाव:सीतापुर-हरदोई पहुंचे लाखों भक्त; पग-पग पर अश्वमेघ यज्ञ के फल की मान्यता


मंगलवार को 84 कोसीय परिक्रमा का 11वां और अंतिम पड़ाव है। आखिरी पड़ाव मिश्रिख है, होली तक परिक्रमा यहीं रहेगी। यहां वह भक्त भी आएंगे तो 84 कोसीय परिक्रमा में शामिल नहीं हो पाए। मान्यता है कि यहां 5 दिन रुक कर पूरी परिक्रमा का फल ले सकते हैं।
84 कोसीय परिक्रमा 1 मार्च से सीतापुर के नैमिषारण्य से शुरू हुई। जो 15 मार्च तक चलेगी। यात्रा 2 जिलों सीतापुर और हरदोई के 250 गांवों से होकर गुजरेगी। यात्रा में 11 पड़ाव हैं। हर पड़ाव के बीच की दूरी 20 से 22 किलोमीटर है। हर साल फाल्गुन मास की प्रतिपदा से यह यात्रा शुरू होती है। यात्रा 84 कोस यानी 252 किमी की होती है।
मान्यता है कि इस परिक्रमा मेले की शुरुआत सतयुग से हुई। तभी से नैमिषारण्य क्षेत्र में होने वाले 84 कोसीय परिक्रमा मेले में साधु संत और श्रद्धालु भाग लेते चले आ रहे हैं।
84 कोसीय परिक्रमा सीतापुर से 25 किमी दूर नैमिषारण्य से शुरू हुई। यात्रा की शुरुआत में 50 हजार भक्त शामिल हुए। परिक्रमा शुरू करने से पहले नैमिषारण्य में यात्रियों ने चक्रतीर्थ (जो चक्रनुमा बना हुआ है) गोमती नदी में स्नान किया, फिर चक्रतीर्थ प्रांगण पर गणेश जी को लड्डू का प्रसाद चढ़ाया। इसके बाद चक्रतीर्थ प्रांगण स्थित श्री भूतनाथ, संकटमोचन हनुमान, श्रृंगी ऋषि और द्वारिकाधीश मंदिर पर पूजा अर्चना कर यात्रा आगे बढ़ी।
इस यात्रा में सभी पैदल ही चल रहे हैं। यात्रा जहां से भी गुजरती है। वहां पर लाइट, पानी और टेंट की व्यवस्था पहले से रहती है।

नैमिषारण्य के व्यास पीठाधीश अनिल कुमार शास्त्री कई प्रदेशों के भक्तों के साथ अपने 3 हाइटेक रथों के साथ यात्रा में शामिल हुए।

परिक्रमा में दूर दराज से बाबा और साधु संत आए हैं।

भक्तों के लिए हर पड़ाव पर टेंट की व्यवस्था की जाती है। खाने के लिए भंडारे का आयोजन किया जाता है।
पहला पड़ाव सीतापुर का कोरौना गांव यात्रा का पहला पड़ाव 1 मार्च को कोरौना गांव में होता है। यह नैमिष से करीब 15 किलोमीटर दूर है। पहला पड़ाव होने के कारण यहां पर परिक्रमा का भव्य स्वागत किया गया। गांव के लोगों ने यात्रा के प्रवेश करने पर भक्तों को फूल-मालाएं पहनाई।
इसके बाद भंडारे में पूड़ी सब्जी और खीर बनवाया गया। भक्तों के लेटने के लिए टेंट में बिस्तर लगवाए गए। यात्रा रात भर ठहरने के बाद सुबह आगे बढ़ी। जैसे-जैसे ये यात्रा आगे बढ़ रही है। भक्तों की संख्या बढ़ती जा रही है। कोरौना गांव की यात्रा में करीब एक लाख से अधिक भक्त शामिल हुए।
हरदोई जिले में आते हैं 4 पड़ाव सीतापुर से यात्रा हरदोई जिले में प्रवेश करती है। 2 मार्च को हरदोई से 20 किमी दूर परिक्रमा का दूसरा पड़ाव अतरौली का हर्रैया गांव था। रात्रि विश्राम के लिए यहां पर टेंट की व्यवस्था की गई। जगह-जगह भंडारे का आयोजन भी हुआ। जहां भक्तों को प्रसाद वितरित किया गया। अधिकारियों और प्रशासनिक टीम ने श्रद्धालुओं का माला पहनाकर स्वागत किया।
रात भर विश्राम के बाद भक्तों ने 3 मार्च की सुबह तीसरे पड़ाव नगवा कोथावां के लिए प्रस्थान किया। यहां पर श्रद्धालुओं के जयकारों से वातावरण भक्तिमय हो उठा।
इसके बाद यात्रा 4 मार्च को चौथे पड़ाव गिरधरपुर-उमरारी पहुंची। यहां रात्रि विश्राम के बाद सुबह 5 मार्च को यात्रा साखिन गोपालपुर गांव पहुंची। ये हरदोई का आखिरी पड़ाव स्थल था। श्रद्धालु नंगे पांव परिक्रमा करते रहे।
शाहजहांपुर से आए इन्द्र दास बैसाखी के सहारे इस यात्रा में शामिल हुए। उन्होंने बताया, मैं इस यात्रा में कई सालों से शामिल होने आता हूं। मैं चल नहीं पाता हूं। इसके बावजूद यात्रा में आता हूं। मुझे बहुत ही अच्छा लगता है।

88 वर्षीय अटलदास पिछले 46 वर्षों से लगातार इस परिक्रमा का हिस्सा बन रहे हैं।
88 वर्षीय अटल दास पिछले 46 सालों से लगातार इस परिक्रमा का हिस्सा बन रहे हैं। उन्होंने बताया- मुझे इस यात्रा में शामिल होने में कोई दिक्कत नहीं आती है। 46 सालों से मैं लगातार आ रहा हूं। हर साल इतना ही आनंद मिलता है।
छठे पड़ाव के लिए सीतापुर फिर पहुंची यात्रा हरदोई के साखिन गोपालपुर गांव से यह यात्रा फिर से सीतापुर जिले में प्रवेश करती है। 6 मार्च को यात्रा छठे पड़ाव के लिए देवगवां गांव पहुंची। यहां जगह-जगह भंडारों का आयोजन किया गया।
सांतवें पड़ाव के लिए यात्रा गांव मडरुआ पहुंचीं। यहां पर यात्रा में नैमिषारण्य के व्यास पीठाधीश अनिल कुमार शास्त्री कई प्रदेशों के भक्तों के साथ अपने 3 हाइटेक रथों के साथ शामिल हुए। अनिल शास्त्री ने मांडव्य ऋषि के मंदिर में माल्यार्पण किया और पूजा-अर्चन किया।
सातवें पड़ाव का होता है विशेष महत्व दैनिक भास्कर से बातचीत में नैमिषारण्य के व्यास पीठाधीश अनिल शास्त्री ने बताया- यह सप्तम पड़ाव है, जो कि महर्षि मांडव्य की तपस्थली है। यहां मांडव्य ऋषि तप करते थे। इसी जगह एक राजा के महल से कुछ चोर धन चुराकर ले गए। जब राजा के सैनिकों ने पीछा किया तो चोर महर्षि मांडव्य की कुटिया में छिप गए। सैनिकों ने भ्रमवश मांडव्य ऋषि को चोर समझ कर राजा के सामने पेश कर दिया।
राजा ने बिना सोचे समझे ऋषि को शूली पर चढ़ा दिया। परंतु अपने मंत्रों एवं दिव्य शक्तियों के बलबूते महर्षि का बाल भी बांका नहीं हुआ। जिसको देखकर राजा अत्यंत दुखी हुआ और महर्षि से माफी भी मांगी।