काशी से 40 दिन बाद जूना-अखाड़े के संत होंगे रवाना:अखाड़ा के संरक्षक हरि गिरि महाराज ने दी अनुमति,19 मार्च से मिलेगा नया सार्टिफिकेट


श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा के समस्त गुरु मूर्तियों ने 40 दिन काशीवास के बाद अपने-अपने स्थान के लिए प्रस्थान आरंभ कर दिया है। विशाल भंडारा में प्रसाद ग्रहण कर अखाड़ा के मुख्य संरक्षक स्वामी हरि गिरि महाराज एवं वरिष्ठ अध्यक्ष स्वामी प्रेम गिरि महाराज ने सभी संतों को प्रस्थान की अनुमति देते हुआ विदा किया।
19 को नये नागा साधुओं को मिलेगा सार्टिफिकेट थानापति डाक्टर शिवानंद पूरी ने बताया कि अभी जूना अखाड़े का सर्टिफिकेट तैयार हो रहा है जिसमें नए पदाधिकारी का हस्ताक्षर होगा और उसके बाद नागा साधु संन्यासियों को वह सर्टिफिकेट वितरण किया जाएगा उन्होंने बताया कि 19 मार्च तक सभी को यह वितरण कर दिया जाएगा।

हरि गिरि महाराज ने दी प्रस्थान करने की अनुमति।
चरित्र दोषपूर्ण होने पर सदस्यता रद्द थानापति डाक्टर शिवानंद पूरी ने बताया नागा साधु बड़े ही पवित्र चरित्र के होते हैं। अखाड़ों द्वारा किसी को नागा साधु बनाने से पहले और उसके बाद भी उसके चरित्र की परख की जाती है। इसके साथ ही अखाड़े नागा साधुओं के चरित्र पर हमेशा नजर बनाए रखते हैं।
अगर किसी नागा साधु का चरित्र दोषपूर्ण पाया जाता है तो अखाड़ा उसकी सदस्यता रद्द कर देता है। एक बाद सदस्यता रद्द हो जाने पर फिर अखाड़े में वापसी कभी नहीं होती है।

गुरू मूर्ति डंड कमंडल लेकर हुए रवाना।
धर्म रक्षा के लिए नागा रहते हैं हमेशा तैयार जूना अखाड़े के थानापति डाक्टर शिवानंद पूरी ने बताया कि नागा साधु आमतौर पर समाज में नहीं दिखाई देते, लेकिन वह सनातन धर्म और राष्ट्र धर्म के लिए 24 घंटे तैयार रहते है। उनकी भारत में 5 लाख से अधिक की फौज है, जो किसी भी संकट को झेलने के लिए तैयार रहती है।
काशी के बाद अब कहां रहेंगे नागा साधु सन्यासी शिवानंद पूरी महाराज ने बताया कि काशी से अब सभी नागा बाबा ठंडे स्थानों पर रहने चले जाते हैं। इसकी वजह यह है कि उनके शरीर में ऊर्जा का स्तर काफी ज्यादा होता है। वह गर्मी को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं।इसलिए वह ठंडे स्थानों पर ही रहते हैं। ज्यादातर नागा साधु सन्यासी हिमाचल प्रदेश के तरफ निकलेंगे। इसके आलावा जूना अखाड़े के मठ एवं स्थान है वहां भी कुछ नागा साधु सन्यासी तपस्या में लीन हो जाते हैं।

दिगंबर नागा साधु संन्यासियों का स्वरूप।
शरीर पर लपेट लेते हैं चिता की राख उन्होंने बताया नागा दीक्षा के दौरान दो तरह के नागा साधु तैयार होते हैं। एक दिगंबर नागा साधु, दूसरे श्री दिगंबर नागा साधु दिगंबर नागा साधु एक लंगोट धारण करने के अलावा और कोई कपड़ा नहीं पहनते जबकि श्री दिगंबर की दीक्षा लेने वाले साधु पूरी तरह निर्वस्त्र रहते है।
सबसे मुश्किल श्री दिगंबर नागा साधु बनना ही होता है क्योंकि तब संयम और ब्रह्मचर्य पर सदैव डटे रहने के लिए उनकी सभी इंद्रिया नष्ट कर दी जाती हैं। निर्वस्त्र रहने वाले साधु पूरे शरीर पर राख को मलकर रखते हैं, इसकी भी दो वजह होती हैं, एक तो राख नश्वरता की प्रतीक है, दूसरे राख एक तरह के आवरण का काम करती है ताकि भक्तों को पास आने में किसी तरह का कोई संकोच ना रहे।