हे मां, उसे माफ करना:जिसे पालकर बड़ा किया, उसी ने तुझे छोड़ दिया!
मां की भक्ति और पूजा अर्चना का पर्व नवरात्र। माता रानी के नौ रूपों की आराधना में भक्त डूबे हैं। मां की भक्ति के इस पर्व के बीच दो माताएं ऐसी हैं, जिन्हें हालात ने अभागा बना दिया है। इनकी पूजा करना तो दूर इनके अपनों ने इन्हें उम्र के उस पड़ाव पर बेसहारा छोड़ दिया है, जिसे बुढ़ापा कहते हैं।
उम्र के इस पड़ाव पर हर एक को सहारे की जरूरत होती है। ऐसे में इन्हें वृद्धाश्रम का सहारा लेने को मजबूर होना पड़ा है। हैरानी की बात यह है कि इनमें से एक मां ने जहां बेटे-बहू की प्रताड़ना से तंग आकर घर छोड़ा है तो वहीं दूसरी मां को उसकी बेटी ही माधव बाल निकेतन एवं वृद्धाश्रम में छोड़ गई है।
बेटे-बहू की मारपीट से तंग आकर भागी बुजुर्ग मां
मुरैना की रहने वाली 73 वर्षीय कला देवी के लिए उनका घर अब सिर्फ एक दुखद सपना बनकर रह गया है। बेटे-बहू के मारपीट और दुर्व्यवहार से तंग आकर वे एक दिन घर से भाग निकलीं। किसी ने उन्हें बस में बैठा दिया और वे ग्वालियर आ गईं। 31 मार्च को शब्दप्रताप आश्रम क्षेत्र में दो लोगों को वे भटकती मिलीं, जिन्होंने उन्हें माधव बाल निकेतन एवं वृद्धाश्रम पहुंचाया।
वहां पहुंचकर उन्होंने जो कहा, वह कलेजा चीर देने वाला था – “अब मेरे लिए मेरा बेटा, बहू और नाती-नातिन कोई नहीं हैं। मैं वृद्धाश्रम में ही अपने आखिरी दिन गुजारना चाहती हूं। मेरी मौत हो जाए तो मेरा अंतिम संस्कार भी यहीं कर देना…” कला देवी पढ़-लिख नहीं सकती थीं, इसलिए उन्होंने अपने हाथ से पत्र लिखवाया और अंगूठा लगाकर हमेशा के लिए अपने परिवार से रिश्ता तोड़ लिया।
बुजुर्गों का सहारा बना माधव बाल निकेतन
माधव बाल निकेतन का वृद्धाश्रम छह साल पहले शुरू हुआ था और आज यहां 22 बुजुर्ग बेसहारा जिंदगी जी रहे हैं। इनमें तीन पुरुष, एक दंपती और 17 महिलाएं शामिल हैं। आश्रम जन सहयोग से चलता है और यहां हर बुजुर्ग को परिवार की तरह रखा जाता है। ‘
जिस मां ने जिंदगी दी, उसी को बेटी ने वृद्धाश्रम में छोड़ दिया
ग्वालियर की 71 वर्षीय गीता देवी की कहानी भी कम दर्दनाक नहीं है। सालभर पहले उनके पति का देहांत हो गया। कोई बेटा नहीं था, सिर्फ एक बेटी थी, जिससे उन्हें सहारा मिलने की उम्मीद थी। लेकिन 27 मार्च को बेटी और दामाद उन्हें वृद्धाश्रम छोड़कर चले गए। आश्रम को लिखे पत्र में बेटी ने लिखा-“मां खुद अपनी मर्जी से वृद्धाश्रम में रहना चाहती हैं। हमने उनकी देखभाल की, लेकिन अब वे यही रहना चाहती हैं। हम उनकी बीमारी की जिम्मेदारी लेंगे…”
हम न सिर्फ सहारा देते हैं, बल्कि परिवार की तरह ख्याल रखते हैं
^वृद्धावस्था में माता-पिता को बेसहारा छोड़ देना सबसे बड़ा अपराध है। वे अपनी संतान के लिए पूरी जिंदगी संघर्ष करते हैं, लेकिन जब सहारे की बारी आती है, तो बच्चे उन्हें छोड़ देते हैं। आश्रम में हम ऐसे बुजुर्गों को न सिर्फ सहारा देते हैं, बल्कि परिवार की तरह उनका ख्याल रखते हैं।’

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