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लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी 30 जून 2024 से भारतीय सेना की कमान संभालने जा रहे हैं. फिलहाल वह भारतीय सेना में जनरल मनोज पांडे के बाद नंबर 2 पर हैं, यानी कि भारत के उप थल सेना प्रमुख.
भारत की सेना का प्रमुख वही होता है, जो उस वक्त भारतीय सेना का सबसे वरिष्ठ अधिकारी होता है. इस लिहाज से पूरी भारतीय सेना में जनरल उपेंद्र द्विवेदी ही सीनियर मोस्ट ऑफिसर हैं, लिहाजा जनरल मनोज पांडे के रिटायरमेंट के बाद उन्हें ही भारतीय सेना की कमान संभालनी है.
लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी करीब 39 साल से भारतीय सेना का हिस्सा हैं. 15 दिसंबर, 1984 वो तारीख थी, जब उपेंद्र द्विवेदी भारतीय सेना का हिस्सा बने थे. शुरुआत जम्मू-कश्मीर राइफल्स की 18वीं बटालियन के साथ बतौर सेकेंड लेफ्टिनेंट हुई थी. दो साल के अंदर ही उनका प्रमोशन हुआ और वो लेफ्टिनेंट बन गए.
कश्मीर में आतंकियों से टक्कर
1990 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद अपने चरम पर था और कश्मीरी पंडितों को अपना घर-बार छोड़कर जाना पड़ा था तो आतंकियों के खात्मे के लिए सेना की ओर से एक ऑपरेशन शुरू किया गया था. इस ऑपरेशन का नाम था ऑपरेशन रक्षक, जो जून 1990 में शुरू हुआ था.
इस ऑपरेशन में उपेंद्र द्विवेदी भी शामिल थे, जिन्होंने कश्मीर घाटी के चौकीबल में एक बटालियन का नेतृत्व किया था. तब वो भारतीय सेना में कैप्टन के तौर पर काम कर रहे थे. इसके अलावा राजस्थान के रेगिस्तान में भी लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने भारतीय सेना की कमान संभाली और कई ऑपरेशन को अंजाम दिया.
नॉर्थ ईस्ट में संभाले अलग-अलग कमांड
असम राइफल्स की ओर से 1989 में एक ऑपरेशन राइनो शुरू किया गया था. इस ऑपरेशन का मकसद उल्फा आतंकियों का खात्मा था. बाद के दिनों में लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी भी असम राइफल्स का हिस्सा बन गए और उन्होंने मणिपुर में इस ऑपरेशन की कमान संभाली.
इसके बाद उन्हें असम राइफल्स का इंस्पेक्टर जनरल नियुक्त किया गया. इसके बाद भी वो नॉर्थ ईस्ट में अलग-अलग कमांड संभालते रहे. वो भारतीय सेना के ऐसे अधिकारी हैं, जिनके पास उत्तरी और पश्चिमी दोनों ही कमांड का अनुभव है.
लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने अपने 39 साल के सैन्य करियर में जम्मू-कश्मीर राइफल्स रेजिमेंट 18, असम राइफल्स ब्रिगेड 26, आईजी असम राइफल्स, नॉर्दर्न आर्मी कमांडर, डीजी इन्फेंट्री, 9 कोर कमांडर और सेना के कई दूसरे कमांड को लीड करने के बाद अभी भारतीय सेना में नंबर दो अधिकारी हैं.
भारत-चीन सीमा का विवाद को सुलझाने में रहा है अहम रोल
अपने देश के इन तमाम ऑपरेशंस के अलावा लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी विदेश में भी काम कर चुके हैं. वो सोमालिया में हेडक्वॉर्टर UNOSOM II का हिस्सा थे. सेशल्स में वो सरकार के सैन्य सलाहकार रह चुके हैं.
भारतीय सेना में तकनीक को बढ़ावा देने के लिए भी लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी को याद किया जाता है, जिन्होंने बिग डेटा एनालिटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), क्वांटम और ब्लॉकचेन-बेस्ड रिजल्ट की टेक्नॉलजी को भारतीय सेना में बढ़ावा दिया है.
जब भारत-चीन सीमा का विवाद अपने चरम पर था, तो ये लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी ही थे, जिन्होंने विवाद को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
भारतीय सेना में भारत में बने हथियारों के इस्तेमाल को आत्मनिर्भर भारत के तहत बढ़ावा देने का श्रेय भी लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी को ही जाता है. नॉर्दर्न कमांड के जनरल ऑफिसर, कमांडिंग इन चीफ रहने के दौरान उन्होंने चीन की एलएसी और पाकिस्तान की एलओसी पर भारतीय सेना की चुनौतियों पर बहुत मजबूती से काम किया है.
रीवा सैनिक स्कूल से की पढ़ाई की शुरुआती पढ़ाई
अपने सैन्य करियर में लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी को परम विशिष्ट सेवा मेडल और अति विशिष्ट सेवा मेडल से भी नवाजा जा चुका है. सैन्य अधिकारी के अलावा लेफ्टिनेंट जनरल द्विवेदी एक योग शिक्षक भी हैं. वह मध्य प्रदेश के रीवा के रहने वाले हैं. उन्होंने वहीं के सैनिक स्कूल से अपनी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई की है. उसके बाद वो नेशनल डिफेंस एकेडमी खडकवासला और फिर इंडियन मिलिट्री एकेडमी देहरादून का हिस्सा रहे हैं.
लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी अमेरिका के यूनाइटेड स्टेट्स आर्मी वॉर कॉलेज के भी फेलो रहे हैं, जहां से उन्होंने मास्टर डिग्री ली है. इसके अलावा उनके पास एक और मास्टर डिग्री है, जो उन्होंने स्ट्रैटजिक स्टडीज एंड मिलिट्री साइंस में हासिल कर रखी है. वो डिफेंस एंड मैनेजमेंट स्टडीज में एमफिल हैं.
इन तमाम उपलब्धियों के साथ लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी अब भारतीय सेना की कमान संभालने जा रहे हैं. अभी भारतीय नौसेना के चीफ एडमिरल दिनेश कुमार त्रिपाठी भी उसी सैनिक स्कूल से पढ़े हैं, जहां से लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने पढ़ाई की थी.

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