एक बिजनेसमैन ने बदली 650 महिलाओं की किस्मत:सिलाई की ट्रेनिंग देकर बनाया आत्मनिर्भर, फ्री बसें लगाई; सैलरी पर प्रतिमाह 2 करोड़ खर्च

इस महिला दिवस पर आज हम आपको एक ऐसी यूनिट के बारे में बता रहे हैं जहां गार्ड, सुपरवाइजर और ट्रेनर सब काम महिलाएं करती हैं। यूनिट की 650 महिलाओं सहित करीब 1200 लोगों को रोजगार मिल रहा है। जो मंथली सैलरी के रूप में करीब 2 करोड़ कमा रही हैं। इस हिसाब से प्रति महिला औसत सैलरी 15–20 हजार रुपए से ज्यादा है।
ढाई साल पहले तक ये महिलाएं बेरोजगार थीं। इन्हें यूनिट तक लाने-ले जाने की फ्री व्यवस्था की गई, ट्रेनिंग दी गई और आज एक ही छत के नीचे 650 महिलाएं एक साथ काम करती हैं।
इनकी किस्मत बदलने का क्रैडिट जाता है 72 साल के बिजनेसमैन अमरचंद समदड़िया को। उन्होंने राइजिंग राजस्थान में 500 करोड़ का एमओयू भी सरकार से किया है। ताकि 5 हजार महिलाओं को रोजगार देकर उन्हें आत्मनिर्भर बना सकें।
अमरचंद के लिए महिलाओं को घर की दहलीज से बाहर निकालकर यूनिट तक लाकर उन्हें स्वरोजगार से जोड़ना इतना आसान नहीं था। वे कैसे महिलाओं को यूनिट तक लाए, उन्हें आत्मनिर्भर बनाया, किन परेशानियों से गुजरे।
आइये जानते हैं पूरी कहानी..

पाली के पुनायता ओद्योगिक क्षेत्र स्थित यूनिट में सिलाई करती हुए युवतियां और महिलाएं।
दूसरे प्रदेशों में देखा, महिलाएं काम करती हैं
पाली के टैगोर नगर निवासी बिजनेसमैन अमरचंद समदड़िया ने बताया- बिजनेस को लेकर मैं प्रदेश के बाहर देशभर में टूर पर रहता था। दिल्ली एनसीआर, बेंगलुरु, महाराष्ट्र तक गया। वहां देखा कि महिलाएं दुकानों और फैक्ट्रियों में काम-काज करती हैं।
जबकि राजस्थान में ऐसा कल्चर कम है। ज्यादातर महिलाएं घर के काम-काज में ही लगी रहती थीं। कई ऐसी महिलाओं को भी देखा जिनके पति की मौत के बाद उन्हें घर चलाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। ज्यादातर महिलाएं मजदूरी का काम कर भरण-पोषण कर रही थीं।
महाराष्ट्र, गुजरात, बेंगलुरु में महिलाएं कई तरह के जॉब करती हैं। चीन विश्व में सबसे ज्यादा प्रोडेक्ट उत्पादन करता है। वहां की 70 प्रतिशत महिलाएं कामकाजी हैं। बाजार में 90 प्रतिशत से ज्यादा शॉप महिलाएं संभालती हैं। इससे चीन की जीडीपी में ग्रोथ होती है।
जबकि इंडिया में लगभग 12.15 प्रतिशत महिलाएं ही कामकाजी हैं। ऐसे में आइडिया आया कि क्यों न घर बैठी महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ा जाए। उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जाए। इसे लेकर मैंने एक साल तक रिसर्च किया।

यूनिट के प्रशिक्षण केंद्र में सिलाई सीखती युवतियां।
महिलाओं को दी सिलाई की ट्रेनिंग
अमरचंद समदड़िया ने बताया- मैंने विचार किया कि महिलाओं को सिलाई का काम सिखाकर आत्मनिर्भर बनाऊंगा। इसके लिए ट्रेनिंग सेंटर खोला। महिला ट्रेनर लगाई। उन्होंने महिलाओं को फैक्ट्रियों में होने वाली कपड़े की सलाई फ्री सिखाई।
इसके साथ ही विदेशी मशीनों की साफ-सफाई और मशीनों हैंडिल करना सिखाया।
10 करोड़ की लागत से शुरू की यूनिट
अमरचंद समदड़िया ने बताया- जून 2023 में 10 करोड़ की लागत से पाली के पुनायता औद्योगिक क्षेत्र में सूर्यज्योति एपैरल्स प्राइवेट लिमिटेड यूनिट स्थापित की। यूनिट में पहले दिन का प्रोडक्शन 500 रुपए भी नहीं हुआ ओर खर्च 10 हजार हो गए। लेकिन हार नहीं मानी। कई ट्रेनिंग सेंटर खोले। आस-पास के गांवों की महिलाओं को जागरूक किया। समस्या महिलाओं के गांव से यूनिट तक आने-जाने की थी। सवाल था कि किराए पर पैसा खर्च करेंगे तो बचाएंगे क्या?
ऐसे में गांवों से यूनिट तक महिलाओं का लाने-ले जाने के लिए बसें, टेम्पो लगवाए। आवश्यक सुविधाओं में विस्तार किया। नतीजा यह हुआ कि धीरे-धीरे महिलाओं की संख्या बढ़ने लगी।

युनिट में कपड़े कटिंग करते हुए कारीगर।
10 महिलाओं से शुरुआत, आज 650 महिला वर्कर
अमरचंद समदड़िया ने बताया- शुरुआत में यूनिट में 10 महिला वर्कर थीं। आज 650 महिलाएं सिलाई का काम कर रही हैं। 570 विदेशी सिलाई मशीनें लगी हुई हैं। महिलाओं की सैलरी पर प्रतिमाह 2 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं।
महिला वर्कर मशीनों पर सलवार सूट, लेगिंग, कुर्ती, लेडीज पेंट, मैक्सी, लेडीज पोलो पेंट, स्ट्रेट पेंट जैसे 10 से ज्यादा प्रोडक्ट बनाती हैं। ये उत्पाद देशभर में सप्लाई होते हैं। यूनिट में करीब 1200 लोगों को रोजगार मिल रहा है।

यूनिट में कटिंग गए गए कपड़े।
पति से तलाक हुआ, बेटी को पालने में आई दिक्कत तो चुनी स्वरोजगार की राह
वर्कर सरोज कंवर (30) ने बताया- शादी के कुछ साल तक तो अच्छा चला। एक प्यारी सी बेटी भी हुई। फिर पति प्रताड़ित करने लगा। परेशान होकर तलाक ले लिया। पीहर में रही। माता-पिता पर बोझ नहीं बनना चाहती थी।
इसलिए यूनिट जॉइन कर ली। करीब एक साल से काम कर रही हूं। यहां सुपरवाइजर का काम देख रही हूं। प्रतिमाह 25 हजार रुपए सैलरी है। आत्मविश्वास बढ़ा है। चाहती हूं कि बेटी भी बड़ी होकर आत्मनिर्भर बने। ताकि विपरीत हालात में उसे दूसरों पर डिपेंड न रहना पड़े।

यूनिट में कार करती महिलाएं और युवतियां।
अपनी पढ़ाई का खर्च उठाना है, इसलिए कर रही काम
पाली के खामल गांव (सोजत) निवासी उर्मिला (20) ने बताया- मैं बीए प्रथम वर्ष की छात्रा हूं। टीचर बनना चाहती हूं। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। इसलिए यहां 7 महीने से सिलाई कर रही हूं। 12 से 15 हजार रुपए प्रतिमाह कमा लेती हूं। खुद की पढ़ाई का खर्च निकाल रही हूं। ताकि टीचर बनने का अपना सपना पूरा कर सकूं।

पाली के पुनायता औद्योगिक क्षेत्र स्थित यूनिट में सिलाई करती युवतियां।
500 करोड़ का किया MOU, 5000 महिलाओं को रोजगार देने का लक्ष्य
यूनिट के मैनेजिंग डायरेक्टर मुदित समदड़िया ने बताया- हाल में राइजिंग राजस्थान के तहत सरकार से 500 करोड़ का MOU किया है। 5 हजार महिलाओं को ट्रेनिंग देकर आत्मनिर्भर बनाने का टारगेट है। यूनिट में डिस्पेंसरी, प्ले रूम और बच्चों के लिए केयर टेकर की सुविधा शुरू करने पर काम किया जा रहा है। इसके अलावा बहुत सी सुविधाएं महिला वर्कर को दी हैं।
यूनिट की ओर से महिलाओं को ये सुविधाएं
- घर से यूनिट तक लाने ले जाने के लिए फ्री बस।
- सिलाई की फ्री ट्रेनिंग।
- पीएफ, ईएसआई।
- यूनिट में कैंटीन की सुविधा।
- सुरक्षा को लेकर पूरी यूनिट में CCTV कैमरे।
- बसों में भी CCTV कैमरे।
- यूनिट में गार्डन की भी व्यवस्था।
- लंच करने के लिए टेबल-कुर्सी की व्यवस्था।
- महिला सुरक्षा गार्ड की व्यवस्था।
- यूनिट में काम करने वाली महिलाओं को लाने ले जाने के लिए लगाई गई बसें। जिसमें सुरक्षा को लेकर सीसीटीवी कैमरे भी लगे हुए हैं।
- यूनिट में काम करने वाली महिलाएं और युवतियां लंच करते हुए।
- यूनिट में काम करती युवतियां।
- यूनिट में काम करते युवक।
- यूनिट में पैकिंग करती युवतियां।